बेनाम रिश्ते


जिंदगी की धूप में
दुखों के अंधकार में
देखा है मैंने अक्सर
अपनों को मुंह छिपाते।
पहनकर पराएपन का मास्क
चुरा कर नजरें बचते-बचाते
पल्ला झाड़ कर अक्सर
देखा है मैंने उन्हें दूर जाते।
तब मरहम बन कर
आ जाते हैं अक्सर सामने
कुछ अनकहे रिश्ते
जो जानते देना
जिन्हें पता होते हैं मायने
जिंदगी के 
जो तपती धूप में
बन जाते हैं ठंडी छांव
जो चाहते नहीं
रिश्ते का कोई नाम
बस आहिस्ता से गमों को सहलाते
वीराने में फूल खिला जाते
जो अजनबी होकर भी
होते हैं सबसे अपने
जो लगते हैं जैसे हों सपने
पर बेनाम से ये रिश्ते
सम्हाल लेतें है
टूटती आस की डोर
इनके अपनेपन का
नहीं कोई ओर-छोर
ये अनजाना सा बंधन
जो जिंदगी के सफर में
चलते-चलते ही जुड़ जाता है
जब कोई न दे साथ
तब यही काम आता है
होती हैं ये धरोहर
अनमोल और खूबसूरत
जो रिश्तों की नई
लिखती है इबारत।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. दोस्ती के रिश्ते ऐसे ही तो होते हैं।
    सच्चे दोस्त अक्सर मुश्किल वक्त में काम आते हैं और
    सच्चे रिश्तेदार झूठे से लगते है।

    बहुत अच्छी रचना।

    कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका 

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 14 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढिया!!शब्दों के साथ अपनी भावनाओ को बाँधना

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद प्रवाह

देखूं आठों याम