कुछ दोहे
कीट फसल को चट करें,कृषक देखअकुलाए
फसलों का बचाव करें,रसायनिक छिड़काए।
कीट मरें सो तो मरे,जहर फसल घुल जाए।
बीमारी के कोण में,मानव को उलझाए।
बिगडती इस सेहत से,मानव हुआ निराश।
दृष्टिकोण का फेर से,सिर पे खड़ा विनाश।।
रोटी कपड़ा व मकान,सबकी रहती आस।
सुखी वही संसार में,जिसके हो ये पास।
लालच के पड़ फेर में,मानुष करता फेर।
रोटी कपड़ा के लिए,उलझन का है ढ़ेर।
जीवन में उलझन बड़ी,कैसे लाभ कमाएं।
सोचे ना वो दो घड़ी,स्वारथ में पड़ जाए।।
कीट लोभ का मन बसा,बदलता दृष्टिकोण।
कपट कपड़ा पहन लिया,उलझन सुलझे कौन।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
फसलों का बचाव करें,रसायनिक छिड़काए।
कीट मरें सो तो मरे,जहर फसल घुल जाए।
बीमारी के कोण में,मानव को उलझाए।
बिगडती इस सेहत से,मानव हुआ निराश।
दृष्टिकोण का फेर से,सिर पे खड़ा विनाश।।
रोटी कपड़ा व मकान,सबकी रहती आस।
सुखी वही संसार में,जिसके हो ये पास।
लालच के पड़ फेर में,मानुष करता फेर।
रोटी कपड़ा के लिए,उलझन का है ढ़ेर।
जीवन में उलझन बड़ी,कैसे लाभ कमाएं।
सोचे ना वो दो घड़ी,स्वारथ में पड़ जाए।।
कीट लोभ का मन बसा,बदलता दृष्टिकोण।
कपट कपड़ा पहन लिया,उलझन सुलझे कौन।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
कम शब्दों में गहरी बात
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार संजय जी
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०३ -११ -२०१९ ) को "कुलीन तंत्र की ओर बढ़ता भारत "(चर्चा अंक -३५०८ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंएक डरावना सच जो दिन ब दिन बढ़ता जा रहा हैं ,सुंदर दोहे ,सादर नमन सखी
जवाब देंहटाएं.. बहुत अच्छे दोहे.. और ज्यादा की इच्छा में सभी खाने-पीने से लेकर दैनिक यापन की चीजों में भी स्वार्थ की धुन लग चुकी है.. दोहों के जरिए बहुत ही विचारणीय विषय पर आपने लिखा
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार अनीता जी,सादर
हटाएंलाजवाब दोहे...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंपते की बात, हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏
हटाएंब्लाग पर आपका स्वागत है।