मेरे एहसास
पाया है जब भी खुद को अकेला,
भटकता रहा मन भीड़ का मेला।
जगाया है तुमने तभी मन में मेरे,
विश्वास-दीप व हर दुख को झेला।
छाया था जीवन में जब भी अंधेरा,
लगा ऐसा कि फिर न आएगा सवेरा।
तब बन के सूरज चमकने लगे तुम,
निराशा ने अपना उठाया था डेरा।
न छोड़ा कभी हाथ थामा जो तुमने,
न मांगा कभी बदले में कुछ तुमने ।
रहे बनके साथी छाया के जैसे,
हर मोड़ पर साथ निभाया है तुमने।
आशा तुम्हीं हो और विश्वास तुम ही,
कड़ी धूप में बनते छाया भी तुम ही।
मैं और तुम का मिटा भेद जबसे,
बसे हो मेरी आत्मा में भी तुम ही।
ये साथ हमारा है स्वार्थ से ऊपर,
जिएंगे सदा हम ऐसे ही मिलकर।
संकट सहेंगे,बढ़ेंगे हम साथी
जिएंगे कभी न हम यूं डर-डरकर।
ये रिश्ता अपना रूह से जुड़ा है,
अहसास तुम्हारा ,तुमसे बड़ा है।
भले ही रहो तुम कहीं पर ऐ साथी,
जीवन को तुमसे संबल बड़ा है।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
ये रिश्ता अपना रूह से जुड़ा है,
अहसास तुम्हारा ,तुमसे बड़ा है।
भले ही रहो तुम कहीं पर ऐ साथी,
जीवन को तुमसे संबल बड़ा है।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
ये खूबसूरत जोड़ी, ये अटूट विश्वास, ये अमर प्रेम, आनंदित जीवन सदा बना रहे।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना।
कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका