तांका (शब्द, मोह-माया,पत्र)


(शब्द)
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शब्द-सागर
भावों की हो गागर
उत्तम शब्द
सुंदर हो सृजन
रसमय हो काव्य
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शब्द हैं ब्रह्म
करते हैं विस्फोट
निसृत ध्वनि
शब्द-अर्थ शरीर
रसमय हो काव्य।

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(विभीषिका)
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निष्ठुर अग्नि
बन गई थी काल
चिराग बुझे
अंधकार प्रबल
तड़पते मां-बाप।

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(मोह-माया)
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भौतिक सुख
सांसारिक बंधन
उलझा मन
असंतोष से ग्रस्त
बढ़ाते सदा खर्च।
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जीवन धन
व्यर्थ हो रहा खर्च
माया में फंसा
हरि को कहां भजा
भुगत रहा सजा।
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माया में फंसा
मुक्ति मृगतृष्णा
मिट्टी का तन
मोहपाश जकड़ा
उलझा न सुलझा।

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(पत्र)
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आया न पत्र
विरह से व्यथित
तकती राह
हृदय चुभे शूल
प्रिय गए क्या भूल ?
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प्रेम सुगंध
अमिट जो स्मृतियां
समेटे पत्र
साक्षी बीते पलों के
संवाद दो दिलों के।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर लिखा आपने..

    भौतिक सुख
    सांसारिक बंधन
    उलझा मन
    असंतोष से ग्रस्त
    बढ़ाते सदा खर्च।
    प्रभावशाली👍
    हर विधा में आपकी सृजनशीलता सराहनीय है। आपकी रचनात्मकता ध्यान आकृष्ट करती है अभिलाषा जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार प्रिय श्वेता,बस आप लोगों से ही
      सीखा है,आप, यशोदा दी,विभा दी, रवीन्द्र जी,
      और भी सब लोगों ने जो प्रतिक्रियाएं दी है,वे
      ही उत्साहवर्धन भी करती हैं और मार्गदर्शन भी।
      नमन है आप लोगों के स्नेह को ।

      हटाएं

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