क्षणिकाएं

     
   कहां सुनाई देती
   किसी निरीह की पुकार
   पत्थरों के शहर में
   भगवान भी पत्थर के
   इंसान भी पत्थर के
   टकराकर लौटती पुकार
   घुट कर रह जाती!!
*****************************
   पुकार अब
   हृदय तक नहीं जाती
   नहीं जलती कोई आग
   नहीं उठती कोई लहर
   पुकार में नहीं दम या
   हृदय में भाव हुए कम
   या हो गए हम निष्प्राण
   सुनकर पुकार
   कभी किया किसी परित्राण!!
******************************
   उठी लहर
   बस उठती गई
   सर्वत्र चीत्कार
   पसरा मौन
   मृत्यु का नंगा नाच।
*****************************
   था अशांत मन
   उठी लहर
   आया तूफान
   एक पल में
   काठ बनी जिंदगी
   कांच से बिखरे
   सारे स्वप्न।
*****************************

  जिह्वा ने रचे प्रपंच
  टूटते रिश्ते
  बिखरते घर
  होते युद्ध
  बेबस इंसान 
  सोच समझकर बोल ।
******************************
  जिव्हा
  अमर्यादित
  उच्छृंखल
  वाचाल
  करती मनमानी
  बदली एक पल में
  सारी कहानी।
******************************

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 25 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. अति सराहनीय पूर्ण भावों में गूँथी सुंदर सारगर्भित क्षणिकायें हैं अभिलाषा जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. एक से बढ़ कर एक ...
    लाजवाब सभी क्षणिकाएं ...

    जवाब देंहटाएं

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