करते हैं सजदा

तेरे दर पर
लेके खाली दामन
मायूसियों के मारे
वक्त के सितम
सह-सह कर हारे
करते हैं सजदा
ऐ मेरे मौला!!
न डूबे कश्ती
बीच भंवर में
न मिटे जिंदगी
नाउम्मीदी के जहर में
खाली उनकी झोली
भर देना मौला!
करते हैं सजदा
और ये दुआ भी
उनके घर भी आए ईद
मने रोज दीवाली
मिट जाए ग़म के
काले अंधेरे,
खुशियों से रोशन
हों उनके सवेरे
तेरी मर्जी के आगे
चली किसकी कहां हैं
लबों से बस निकले
यही दुआ है
तेरी रहमत का नूर
बरसे सभी पर
ग़म का साया
न रहे कहीं पर
ऐ मेरे मौला!
करते हैं सजदा।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक



टिप्पणियाँ

  1. कर्म और नियति के मध्य
    आस्था, विश्वास एवं भावना का विचित्र संगम है।
    सुंदर रचना , सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-09-2019) को "पाक आज कुख्यात" (चर्चा अंक- 3466) पर भी होगी।


    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर रचना अभिलाषा जी ! बहुत भावपूर्ण सृजन !

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २३ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. तेरी रहमत का नूर
    बरसे सभी पर
    ग़म का साया
    न रहे कहीं पर
    ऐ मेरे मौला!
    करते हैं सजदा।
    आमीन ,आपकी दुआ काबुल हो ,हर एक के दिल से निकली हुई दुआ....
    भावपूर्ण रचना सखी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हां सखी दुनिया में दुख चिरस्थाई है और सुख क्षणिक , अस्पतालों के चक्कर लगाते हुए देखा
      है मैंने उम्मीद और नाउम्मीदी की जंग को।कहते
      हैं दवा के समान दुआ भी काम करती है।बस वही दुआ कर रही हूं। सहृदय आभार सखी सादर

      हटाएं
  6. तेरी रहमत का नूर
    बरसे सभी पर
    ग़म का साया
    न रहे कहीं पर
    ऐ मेरे मौला!
    करते हैं सजदा।
    कल्याणकारी भावों से सजी बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं

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