ओढ़ कर खामोशी

मैं हूं ज़िंदादिल!!
समझती हूं ,
जिंदगी के मायने,
रिश्तों की अहमियत,
समय की महत्ता,
कर्त्तव्य-परायणता,
रहता है प्रयास यही,
न दिल दुखे किसी का,
न हो किसी की सेवा में कमी,
बन जाती हूं चट्टान!!
विपत्ति के क्षणों में,
ओढ़ कर खामोशी!
करती हूं सामना बुरे वक्त का,
पर एक कड़वा सच,
जो आता है सामने,
अपनों का गैर जिम्मेदाराना रवैया,
तब बिखरने लगती हूं मैं,
अंतस में उमड़ता है ज्वार!!
जिसे खुद ही पी जाती हूं,
मैं हूं चट्टान!!
जिसके अंतस में है ,
खारे पानी का सोता!!
निर्विकार भाव से सहती हूं मैं,
वक्त के बेरहम हथौड़े,
और मजबूती से,
पकड़ लेती हूं जिंदगी का दामन,
पी जाती हूं खामोशी से,
अंतस की पीड़ा!!
नहीं हारती हूं मैं,
क्योंकि हूं मैं ज़िंदादिल !!

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक



टिप्पणियाँ

  1. इंसान चाहे कितना भी ज़िंदादिल हो , यदि संवेदनशील है , भावनाएँ हैं , तो कभी तो पीड़ा भरी ख़ामोशी होगी ही..
    यह और बात है कि चेहरे पर नकाब चढ़ा ले।
    जी करते भी हैं ऐसा अनेक लोग..
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय शशि भाई,
      संवेदनशील होना मानवप्रकृति है किंतु मूर्ख के साथ मूर्ख बनना बेवकूफी।अक्सर लोग दूसरों से
      ज्यादा अपेक्षाएं कर लेते हैं,जिसका परिणाम
      सदा पीड़ादायक होता है, अतः उस समय अपनी
      क्षमता पर विश्वास करना ही उचित है और खामोश रहना भी।

      हटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-09-2019) को " हिन्दीदिवस " (चर्चा अंक- 3458) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "पाँच लिंकों का आनन्द" के हम-क़दम के 88 वें अंक में सोमवार 16 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. पी जाती हूं खामोशी से,
    अंतस की पीड़ा!!
    नहीं हारती हूं मैं,
    क्योंकि हूं मैं ज़िंदादिल !!
    बहुत ही सुंदर रचना सखी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हां सखी खुद को जिंदा रखने के लिए कई बार
      अंतस की पीड़ा को पीना ही पड़ता है क्योंकि
      लोग किसी की वेदना को अनुभूत नहीं कर सकते। सहृदय आभार सखी सादर

      हटाएं
  5. विपत्ति के क्षणों में,
    ओढ़ कर खामोशी!
    करती हूं सामना बुरे वक्त का,
    विपत्ति के क्षणों मेंं खामोशी (मौन) की शक्ति बहुत आत्मिक बल देती है
    बहुत लाजवाब सृजन...

    जवाब देंहटाएं

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