अजीब सी ये खामोशी
एक अजीब सी खामोशी
पैर जमाती है समय के साथ
दर्द भी लबों तक आते शर्माता है
कुछ बिखरता है कुछ टूट जाता है
किरचा-किरचा हुई कांच सी जिंदगी
चुभती बहुत बेवजह ये खामोशी
हंसने वाले तो तलाशते मौका
कुछ तो पत्थर हाथ में लेकर बैठे
मिलते कहां इंसान ढूंढे -ढूंढे
अनेक सपनों की समाधि है ये
दम तोड़ती इच्छाओं का है आईना
समय के साथ बनाती है घर अपना
भुला देती है जीवन कैसे जीना
टूट जाते हैं पंख रूक जाती उड़ान
बर्बादी लिखती है नई इक दास्तान
ये खामोशी पंजों में दबोचे जीवन
सोखती जाती है जीवन के रस
तन्हाई और अकेलेपन बनते साथी
पसर जाती है भीतर-बाहर खामोशी।
देती है आने वाले तूफानों का संदेशा,
जिसका किसी को कहां होता अंदेशा।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
मिलते कहां इंसान ढूंढे -ढूंढे
अनेक सपनों की समाधि है ये
दम तोड़ती इच्छाओं का है आईना
समय के साथ बनाती है घर अपना
भुला देती है जीवन कैसे जीना
टूट जाते हैं पंख रूक जाती उड़ान
बर्बादी लिखती है नई इक दास्तान
ये खामोशी पंजों में दबोचे जीवन
सोखती जाती है जीवन के रस
तन्हाई और अकेलेपन बनते साथी
पसर जाती है भीतर-बाहर खामोशी।
देती है आने वाले तूफानों का संदेशा,
जिसका किसी को कहां होता अंदेशा।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " गुरूवार 12 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत ही सारगर्भित चिंतन खामोशी पर । सच लिखा आपने ।
जवाब देंहटाएंअनेक सपनों की समाधि है ये¡!!!!
खामोशियों की भयवाहता जहाँ भी पसर जाती है , वहाँ से खुशियाँ नदारद हो जाती हैं बौद्धिक रचना के लिए बधाई। 🙏🙏💐🌷💐🌷
सहृदय आभार प्रिय रेणू बहन,
हटाएंखामोशी की दास्ताँ ...
जवाब देंहटाएंपर इस खामोशी से बहुत कुछ निकलता है जो यादों में तब्दील हो जाता है ....
बिल्कुल सर बशर्तें वह सुखद हो अन्यथा ऐसी
हटाएंखामोशी तो इंसान को या तो जीवन से दूर करती
है या फिर एकांगी बनाती है।उसके अंदर का बचपन मर जाता है। दुखदाई स्मृतियों में उलझा
व्यक्ति या तो विरक्त होता है या फिर उनसे दूर
भागना चाहता है। बेहतरीन प्रतिक्रया के लिए
सहृदय आभार आदरणीय 🙏
ये खामोशी पंजों में दबोचे जीवन
जवाब देंहटाएंसोखती जाती है जीवन के रस
तन्हाई और अकेलेपन बनते साथी
पसर जाती है भीतर-बाहर खामोशी।...
वेदना एवं रूदन के बाद ख़ामोशी कभी- कभी विरक्ति भी दे जाती है। जीवन के यथार्थ को इंसान समझ पाता है।
सादर..।
जीवन के यतार्थ को व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना, अभिलाषा दी।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार प्रिय ज्योति
हटाएंलाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया दीदी
हटाएंआपकी लिखी रचना "पाँच लिंकों का आनन्द" के हम-क़दम के 88 वें अंक में सोमवार 16 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏
हटाएंटूट जाते हैं पंख रूक जाती उड़ान
जवाब देंहटाएंबर्बादी लिखती है नई इक दास्तान
ये खामोशी पंजों में दबोचे जीवन
सोखती जाती है जीवन के रस
सचमुच ऐसी खामोशी बर्बादी ही लिखती है...
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबेहद मार्मिक रचना सखी ,हाँ ख़ामोशी के भी कई रूप हैं कभी कभी दम घोट देती हैं।
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