शर्तों से घिरा जीवन


कैसी-कैसी शर्तें लगाते हैं लोग
जिंदगी को दांव पर लगाते हैं लोग।
फकत मुट्ठी भर खुशियों की होती तलाश
खुशियों के लिए ही तरसते हैं लोग।

कैसे करें पूरी जिंदगी की जरूरतें,
जरूरतों के लिए शर्तें निभाते हैं लोग।
हर कोई यहां लगाता है शर्त,
बिना शर्तों के कहां जीवन जीते हैं लोग।

बड़े से बड़े काम होते  शर्त से,
घर और बाहर आदमी जूझता शर्त से
मानो अगर शर्त तो काम बन जायेंगे
बिगड़ता बहुत कुछ टूटती शर्त से।

सदियों से चली आ रही परंपरा है ये
हर युग की कहानी लिखी गई शर्त से
विवशता बनी कभी, बनी जीवन का ध्येय
पर हारे न जीवन कोई ,कभी शर्त से।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक




टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-08-2019) को " मुझको ही ढूँढा करोगे " (चर्चा अंक- 3424) पर भी होगी।


    --

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….

    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर अभिलाषा जी पर ना हारे कोई जीवन कभी शर्त से

    जवाब देंहटाएं
  3. "बिना शर्तों के कहां जीवन जीते हैं लोग।" - सत्य वचन !!!

    जवाब देंहटाएं
  4. सही कहा हर बात पर शर्त...
    बहुत सुन्दर....

    जवाब देंहटाएं
  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १२ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह ! हर शख्स के दर्द को बयान करती बहुत सुन्दर सशक्त रचना !

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!!सखी ,बहुत खूबसूरत रचना!

    जवाब देंहटाएं

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