यह बस एक भ्रम है



जीवन का सच
समझ लिया है मैंने
यह बस एक भ्रम है
इसके सिवा कुछ भी नहीं
हम इसे पकड़े है दोनों हाथों से
फिर भी कहां पकड़ पाते हैं
एक झटके में
सपने टूटते जाते हैं
अपने छूट जाते हैं
भ्रम में भटकते
माया में उलझते
सत्य से विमुख हो जाते हैं
जन्म से लेकर मृत्यु तक
रचे इस मायाजाल में
उलझे किसी बेबस जीव सम
मुक्ति की तलाश में
फड़फड़ाते
हम और उलझते जाते हैं
यह उलझना
समस्याएं बढ़ाता है
न मिलता समाधान
न सत्य नजर आता है।
बस एक चक्रव्यूह
जिसमें फंसे हम
न जीवन को जी पाते हैं
न मृत्यु से भाग पाते हैं।



टिप्पणियाँ

  1. बस एक चक्रव्यूह
    जिसमें फंसे हम
    न जीवन को जी पाते हैं
    न मृत्यु से भाग पाते हैं।

    बहुत सुंदर संदेश दी.
    यदि हम अर्जुन (सिद्ध पुरुष) न भी बन पाये तब भी इस चक्रव्यूह में वीर अभिमन्यु सा प्रवेश कर अपने आत्मबल से काम क्रोध मद लोभ जैसे शत्रुओं से संघर्ष करते हुये वीरगति को तो प्राप्त कर ही सकते हैं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय शशि भाई
      हम सभी चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं और अपने-अपने हिस्से की लड़ाई लड रहे हैं लेकिन इस
      लड़ाई में समय आगे बढ़ जाता है और हम पीछे
      रह जाते हैं।आपकी सुन्दर और सटीक प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार

      हटाएं
  2. वाह बहुत सुंदर अंहसास।हम बस मोह-माया में पड़कर भ्रमित होकर जाते जाते हैं और मृत्यु से भागना चाहता हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. इसीलिए तो कबीरदास कह गए हैं कि "माया मोह महाठगनी हम जानी, त्रिगुण फांस लिए डोले, बोले मधुर वाणी "
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  4. सच है और जब तक ये चक्र है साँसों का निभाना तो होता ही है ...
    गिनती की साँसें पूरी करनी होती हैं ... सुन्दर रचना ...

    जवाब देंहटाएं

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