नया उजाला भर आएं

चलो कुछ नया काम कर जाएं,
डूबे हैं जो अंधेरों में।
जीवन उनके उजालों से भर जाएं।
नहीं पहुंचा जहां तक आज,
उजाला शिक्षा का देखो।
चलो इक दीप ज्ञान का,
वहां जाकर जला आएं।
अभी तक हैं जो अंधेरों में,
समझते बोझ बेटी को।
पढ़ाते न न लिखाते हैं,
मारते गर्भ में उसको।
चलो उनके दिलों में,
प्रीत बेटी की जगा आएं।
कराते बच्चों से मजदूरी,
मंगवाते भीख हैं उनसे।
चलो उनके दिलों में,
एक नया उजाला भर आएं।
गरीबी के अंधेरों में,
डूबे हैं घर जिनके देखो।
आंसुओं को पीकर बुझाते ,
प्यास अपनी हर पल जो।
चलो कुछ सुख के पल,
उनको महसूस करा आएं।
मिटा दें दिल से ऊंच-नीच की,
खड़ी हैं ये जो दीवारें।
मिटा दें दिल के अंधेरों को
उजाले दिल में भर आएं।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक


टिप्पणियाँ

  1. वाह बहुत सुन्दर भावों वाली उत्कृष्ट रचना।

    चलो उजाला भर आयें
    जहाँ गम और मुफ़लिसी के साये।

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  2. मिटा दें दिल से ऊंच-नीच की,
    खड़ी हैं ये जो दीवारें।
    मिटा दें दिल के अंधेरों को
    उजाले दिल में भर आएं।

    बहुत ही सुंदर ....

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १० जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. सकारात्मकता से ओतप्रोत सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. चलो कुछ नया काम कर जाएं,
    डूबे हैं जो अंधेरों में।
    जीवन उनके उजालों से भर जाएं।
    नहीं पहुंचा जहां तक आज,
    उजाला शिक्षा का देखो।
    चलो इक दीप ज्ञान का,
    वहां जाकर जला आएं।....बेहतरीन सृजन दी जी

    जवाब देंहटाएं
  6. सहृदय आभार प्रिय अनीता,सादर

    जवाब देंहटाएं

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