मैं की तलाश
तलाश स्व की
अंतहीन
स्वयं में ,मैं को खोजते
कब सरक जाती है
जिंदगी हाथ से..।
अहम और मैं
अंतर हैं सूक्ष्म
अहम में सर्वोपरि
सत्ता स्वयं की
जबकि ,मैं
जानना ,उस अनादि
सत्य को।
मैं ,से साक्षात्
उस अनंत से तादात्म्य
जिसमें समाहित
अखिल ब्रह्माण्ड
मैं,तुम और सब।
मैं और बस मैं
जनक है अहम का
जबकि
जैसा मैं वैसे सब
जनक है समत्व का।
मैं ,आखिर है
अनादि ,अनंत ,अखंड
सर्वेश,सर्वव्यापी।
मैं की पहचान है
स्वयं से पहचान
जीवन-उद्देश्य से साक्षात्
तुच्छ मनोवृत्ति का त्याग।
दरअसल
मैं, को पकड़ना है
भ्रमजाल,
सिर्फ मैं
अहंकार का जनक
यह ,मैं
वह ,जो कभी नहीं
बन सकता ,किसी का
स्वयं का भी।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
अंतहीन
स्वयं में ,मैं को खोजते
कब सरक जाती है
जिंदगी हाथ से..।
अहम और मैं
अंतर हैं सूक्ष्म
अहम में सर्वोपरि
सत्ता स्वयं की
जबकि ,मैं
जानना ,उस अनादि
सत्य को।
मैं ,से साक्षात्
उस अनंत से तादात्म्य
जिसमें समाहित
अखिल ब्रह्माण्ड
मैं,तुम और सब।
मैं और बस मैं
जनक है अहम का
जबकि
जैसा मैं वैसे सब
जनक है समत्व का।
मैं ,आखिर है
अनादि ,अनंत ,अखंड
सर्वेश,सर्वव्यापी।
मैं की पहचान है
स्वयं से पहचान
जीवन-उद्देश्य से साक्षात्
तुच्छ मनोवृत्ति का त्याग।
दरअसल
मैं, को पकड़ना है
भ्रमजाल,
सिर्फ मैं
अहंकार का जनक
यह ,मैं
वह ,जो कभी नहीं
बन सकता ,किसी का
स्वयं का भी।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
वाह बहुत सुन्दर सखी अप्रतिम सृजन।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी🙏
हटाएंबेहतरीन लेखन हेतु साधुवाद आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/04/2019 की बुलेटिन, " लड़ाई - झगड़े के देसी तौर तरीक़े - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏 ब्लाॅग बुलेटिन में
हटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए
विचारणीय रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसुंदर रचना। आपने सही कहा:
जवाब देंहटाएंदरअसल
मैं को पकड़ना है
भ्रमजाल
सिर्फ मैं
अहंकार का जनक
यह मैं
वह जो कभी नहीं
बन सकता किसी का
स्वयं का भी।
सहृदय आभार आदरणीय 🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
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