आह!वेदना मुझमें सोती….!

आह!वेदना मुझमें सोती,
जग की पीड़ा देख के रोती।
चुभती है अपनों की घातें,
ये दुख की जो काली रातें।
विरह-व्यथा की कटु कहानी,
कैसै कहूं मैं अनजानी।
बन के कविता हुई प्रस्फुटित,
हृदय भाव जिसमें उर्जस्वित।
आह!वेदना करती व्याकुल,
हृदय मची रहती है हलचल।
याद आती है बीती बातें,
जग की भीड़, अकेली रातें।
घुट-घुट के हर पल को जीना,
अपने आंसू आप ही पीना।
ओढ़ मुखौटा मुस्कानों का,
अपने-आप से लड़ते रहना।
आह!वेदना कोई न समझे,
जीवन का हर पल है उलझे।
मेरा रोना,हंसना जग का,
मैं मोहरा सबकी बातों का।
प्यार जता कर शूल चुभाना,
जग का है ये खेल पुराना।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2019) "परिवार का महत्व" (चर्चा अंक-3318) को पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    --अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. अत्यंत हृदयस्पर्शी भाव। सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  4. दिल को छूते हुए भाव हैं इस रचन के ...
    मन में संवेदना का जीवित रहना जरूरी है ...

    जवाब देंहटाएं
  5. हृदयस्पर्शी मन में संवेदना का जीवित रहना जरूरी है

    जवाब देंहटाएं

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