अंत समय जब आयेगा

अंत समय जब आयेगा,
तब प्यारे पछतायेगा।
स्वामी बन बैठा है तू,
कुछ न लेकर जाएगा।

ये दुनिया का मेला है,
प्रभु ने खेल खेला है।
सब उसकी कठपुतली हैं,
वह जैसे चाहे नचाएगा।

आदि का अंत निश्चित है,
करले कर्म जो उचित हैं।
माया में तू क्यों भ्रमित है,
जब खाली हाथ ही जाएगा।

नश्वर है संसार ये सारा,
इस सत्य को कभी विचारा,
आंखों पर क्यों बांधे पट्टी,
जो आया सो जाएगा।

अंत शरीर का होना है,
जो पाया सो खोना है।
बांध पोटली सत्कर्मों की,
वही साथ ले जाएगा।

मेरा-तेरा क्यों है करना,
अंत समय से कैसा डरना।
जीवन के हर पल को जी ले,
बीता समय न वापस आएगा।

धर्म-जाति के क्यों पाले झमेले,
मंदिर-मस्जिद में क्यों तू उलझे?
कितने पापड़ बेल रहा है,
सब यहीं धरा रह जाएगा।




अभिलाषा चौहान
स्वरचित, मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर रचना आदरणीया
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर सीख देती रचना...
    वाह !!!

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/02/110.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद प्रवाह

देखूं आठों याम