नजर-नजर की बात

नजरों ने बड़े-बड़े काम किए हैं,
कहीं मिले दिल कहीं कत्लेआम किए हैं।

नजर-नजर की बात बड़ी बात कह गई,
जुबां न कह सकी जज़्बात कह गई।

झुकी-झुकी नजर हया बन गई,
तिरछी हुई नजर तो अदा बन गई।

टेढ़ी नजर ने कई कहर ढा दिए,
कितने बसे हुए गुलशन उजाड़ दिए।

कोई एक नजर को तरसता रहा,
प्यार के लिए दिल तड़पता रहा।

पथराई नजर इंतजार करती रही,
पलकें बिछाए रास्ता देखती रही।

किसी पर नजरें मेहरबान जो हुईं,
जिंदगी खुशियों से गुलजार तो हुई।

नजर फेर कर जब चल दिया कोई,
दिल के हजार टुकड़े हुए नींद भी खोई।

होंठ जो न कह सके ,नजर कह गई,
प्यार,घृणा,दुश्मनी के बीज बो गई।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित


टिप्पणियाँ

  1. bahut khoobsurat rachna...

    najariya kam aata hai
    najar badnam hoti hai
    n jane kyon ye bate
    zindgi me aam hoti hai

    जवाब देंहटाएं
  2. नजर नजर की बात....सुन्दर सटीक ...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. कहा जाता हैं कि सच्चे प्यार करने वाले नजर की भाषा समझ जाते हैं। यहीं हैं नजर का कमाल। होंठ जो न कह सके ,नजर कह गई...बिल्कुल सही,अभिलाषा दी।

    जवाब देंहटाएं

  4. नजर फेर कर जब चल दिया कोई,
    दिल के हजार टुकड़े हुए नींद भी खोई।

    जी बिल्कुल सत्य

    जवाब देंहटाएं
  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ११ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. होंठ जो न कह सके ,नजर कह गई,
    प्यार,घृणा,दुश्मनी के बीज बो गई।

    सच जो जुबा नहीं क्र पाती वो सारा काम नज़र आसानी कर जाती है बहुत खूब सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  7. नजरों ने बड़े-बड़े काम किए हैं,
    कहीं मिले दिल कहीं कत्लेआम किए हैं।..वाह !!सखी बहुत ख़ूब
    सादर

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