मानवता जिंदा है...!!
मानवता मरी नहीं,
अभी जिंदा है।
बस बढ़ते पापों से,
वह शर्मिंदा है।
भटक गए हैं रास्ते से ,
कुछ मानव।
भूल मनुज धर्म,
बन गए हैं दानव।
जिंदगी को समझते
खिलौना हैं वे।
मानवता का कलंक
बन बैठे हैं वे।
मुखौटौं में छुपी होती ,
इनकी सच्चाई।
इसलिए असलियत,
सामने न आई।
मानवता से कहां होता ,
नाता इनका।
बोलते बोल मीठे काम,
बनाते अपना।
ऐसे विश्वासघातियों से,
दुखी होती है।
मानवता कमर कस के,
खड़ी होती है।
दुनिया में करूणा ,दया,
क्षमा बाकी है।
परोपकार ,सद्भाव,समता,
न्याय अभी बाकी है।
एक-जुट होके खड़े होने,
का दम है अब भी।
मुसीबतों से टकराने का,
जज्बा है अब भी।
धर्म-जाति से कहीं ,
ऊंची है मानवता।
रोक सके राह उसकी है,
किसमें ये क्षमता।
मानवता जब तक,
जहां में है जिंदा। दानवों को होना ही पड़ेगा,
सदा शर्मिंदा।
पाप पापियों के ऐसे,
कब तलक छुपेंगे।
पाप के घड़े भरकर ,
एक दिन निश्चित फूटेंगे।
इतिहास साक्षी है ,
सदा इस बात का।
अंत बुरा ही हुआ है,
हर पापी का।
कष्ट उठाकर भी कभी,
न हारी मानवता।
मुंह की खाती रही,
सदा दानवता।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
अभी जिंदा है।
बस बढ़ते पापों से,
वह शर्मिंदा है।
भटक गए हैं रास्ते से ,
कुछ मानव।
भूल मनुज धर्म,
बन गए हैं दानव।
जिंदगी को समझते
खिलौना हैं वे।
मानवता का कलंक
बन बैठे हैं वे।
मुखौटौं में छुपी होती ,
इनकी सच्चाई।
इसलिए असलियत,
सामने न आई।
मानवता से कहां होता ,
नाता इनका।
बोलते बोल मीठे काम,
बनाते अपना।
ऐसे विश्वासघातियों से,
दुखी होती है।
मानवता कमर कस के,
खड़ी होती है।
दुनिया में करूणा ,दया,
क्षमा बाकी है।
परोपकार ,सद्भाव,समता,
न्याय अभी बाकी है।
एक-जुट होके खड़े होने,
का दम है अब भी।
मुसीबतों से टकराने का,
जज्बा है अब भी।
धर्म-जाति से कहीं ,
ऊंची है मानवता।
रोक सके राह उसकी है,
किसमें ये क्षमता।
मानवता जब तक,
जहां में है जिंदा। दानवों को होना ही पड़ेगा,
सदा शर्मिंदा।
पाप पापियों के ऐसे,
कब तलक छुपेंगे।
पाप के घड़े भरकर ,
एक दिन निश्चित फूटेंगे।
इतिहास साक्षी है ,
सदा इस बात का।
अंत बुरा ही हुआ है,
हर पापी का।
कष्ट उठाकर भी कभी,
न हारी मानवता।
मुंह की खाती रही,
सदा दानवता।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
सुन्दर संदेश देती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय आभार सखी
हटाएंबहुत खूब... मानवता जिन्दा है..।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी
हटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएं