निशब्द हूं मैं!!


निशब्द हूं मैं!!
किसी की कमी
कहां होती पूरी!
जाना असमय,
अनजानी दुनिया में!
होता है पहुंच से परे,
उस तक पहुंच पाना,
एक सूनापन !
एक वीराना !
या रेगिस्तान !
सा पसर जाता है,
मन के किसी कोने में,
वहां छाया सन्नाटा!
चीरता है दिल को,
बहता लहू आंसू बनकर!!
कहां समझ पाता कोई,
कभी किसी का दर्द।
एक नीम खामोशी!
मिलती है तनहाई!
कहां हो सकता है संभव,
समझाना वह दर्द!!
जो नितांत अपना,
होता है बयां कैसे करे?
नश्तर-सी चुभती,
मर्मांतक पीड़ा!!
कर देती निशब्द!
डूबते हम दर्द के सागर में।
ढूंढते किनारा,
कहां मिलता है डूबते को तिनके सहारा।

अभिलाषा चौहान


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