हे पलाश!!तुम खिलते रहना...
पलाश !! तुम यूं ही खिलते रहना,
.......तुम तो हो वसंत का गहना।
खिलते रहो गांवों में और वनों में,
दिखते कहां हो अब तुम शहरों में ?
चढ़ गए आधुनिकता की भेंट तुम,
अब तो शहरों में ईद का हो चांद तुम।
औषधीय गुणों के हो तुम स्वामी,
...... कोई नहीं थी तुममें खामी।
फागुन में तुम्हारे रंगों की होती थी फुहार
अब कहां ऐसे सुर्ख रंग का होता दीदार।
कहीं ढाक,किंशुक टेसू ,केशू कहलाए,
कहीं राज्य-वृक्ष का तुम सम्मान पाए।
........ ब्रह्मवृक्ष है नाम तुम्हारा,
पुष्प तुम्हारा जैसे जलता अंगारा।
तुम जब खिलते तो लगता ऐसे,
जंगल में लगी हो आग जैसे।
हे पलाश!तुम सदा खिलते रहो,
अपने सुर्ख रंगों से रंगोली सजाते रहो।
हे पलाश!तुम लड़ो अस्तित्व की जंग,
तुम से निखर उठते प्रकृति के रंग।
....... .हम मानव अज्ञानी बेचारे,
अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारे।
हमने हरे-भरे वृक्ष उजाड़े,
प्रकृति के बन बैठे दुश्मन सारे।
देखो!! खून के आंसू रो रही प्रकृति,
तुम्हारे पुष्पों में उसकी पीड़ा झलकती।
उनका रंग हुआ लहू के जैसा ,
खिलते हैं तो लगे घाव प्रकृति का।
हे पलाश !!बस तुम खिलते रहना!!
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
.......तुम तो हो वसंत का गहना।
खिलते रहो गांवों में और वनों में,
दिखते कहां हो अब तुम शहरों में ?
चढ़ गए आधुनिकता की भेंट तुम,
अब तो शहरों में ईद का हो चांद तुम।
औषधीय गुणों के हो तुम स्वामी,
...... कोई नहीं थी तुममें खामी।
फागुन में तुम्हारे रंगों की होती थी फुहार
अब कहां ऐसे सुर्ख रंग का होता दीदार।
कहीं ढाक,किंशुक टेसू ,केशू कहलाए,
कहीं राज्य-वृक्ष का तुम सम्मान पाए।
........ ब्रह्मवृक्ष है नाम तुम्हारा,
पुष्प तुम्हारा जैसे जलता अंगारा।
तुम जब खिलते तो लगता ऐसे,
जंगल में लगी हो आग जैसे।
हे पलाश!तुम सदा खिलते रहो,
अपने सुर्ख रंगों से रंगोली सजाते रहो।
हे पलाश!तुम लड़ो अस्तित्व की जंग,
तुम से निखर उठते प्रकृति के रंग।
....... .हम मानव अज्ञानी बेचारे,
अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारे।
हमने हरे-भरे वृक्ष उजाड़े,
प्रकृति के बन बैठे दुश्मन सारे।
देखो!! खून के आंसू रो रही प्रकृति,
तुम्हारे पुष्पों में उसकी पीड़ा झलकती।
उनका रंग हुआ लहू के जैसा ,
खिलते हैं तो लगे घाव प्रकृति का।
हे पलाश !!बस तुम खिलते रहना!!
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंबहुत सुंदर, प्रणाम।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंबहुत सुन्दर सखी
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय आभार सखी
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति सोमवार 18 फ़रवरी 2019 को प्रकाशनार्थ "पाँच लिंकों का आनन्द" ( https://halchalwith5links.blogspot.com ) के विशेष सोमवारीय आयोजन "हम-क़दम" के अट्ठावनवें अंक में सम्मिलित की गयी है।
अंक अवलोकनार्थ आप सादर आमंत्रित हैं।
सधन्यवाद।
सहृदय आभार रवीन्द्र जी
हटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंदेखो!! खून के आंसू रो रही प्रकृति,
जवाब देंहटाएंतुम्हारे पुष्पों में उसकी पीड़ा झलकती।
बहुत ही सुन्दर
वाह!!!!
सहृदय आभार सखी
हटाएंवाह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आपका
हटाएंपलास से बहुत सुंदर विनती अभिलाषा बहन।
जवाब देंहटाएंवाह ! खूबसूरत प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंलाज़बाब सृजन सखी ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएं