मुखर मौन अभिव्यक्ति कविता

मुखर मौन अभिव्यक्ति कविता,
भावों की बहती सुर- सरिता।
कविता का संसार है अनुपम,
सुर-ताल की छेड़े है सरगम।
इसमें सारा विश्व समाया,
कोई नहीं यहां अपना-पराया।
कहीं जन्मती,कहीं पनपती,
कहीं खेलती, कहीं कूदती।
इसका क्षेत्र बड़ा व्यापक है,
इसका कोई नहीं मापक है।
दिल से दिल का बंधन है ये,
भावों का अवगुंठन है ये।
मौन की ये होती परिभाषा,
संतप्त हृदय को देती दिलासा।
उड़ती है ये पंख लगाकर,
दम लेती अंधकार मिटाकर।
सूर्य तेज से ज्यादा तेजस्वी,
हृदयों में प्रकाशित इसकी छवि।
हृदय का बनकर उल्लास,
निराश हृदय में भरती आस।
प्रेम -श्रृंगार की ये जलधारा,
वीरों का उत्साह ये सारा।
पीड़ित-वंचित की आवाज़,
क्रांति का करती आग़ाज़।
कवि -कल्पना का ये रूप,
भावों का सुंदर स्वरूप।
अनंतकाल से ये प्रवाहित,
इसमें जन-मन है संचित।

अभिलाषा चौहान

टिप्पणियाँ

  1. दिल से दिल का बंधन है ये,
    भावों का अवगुंठन है ये।
    मौन की ये होती परिभाषा,
    संतप्त हृदय को देती दिलासा।
    उड़ती है ये पंख लगाकर,
    दम लेती अंधकार मिटाकर।...बहुत ख़ूब सखी
    सादर

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  2. यथार्थ अभिव्यक्ति
    बहुत ही सुंदर रचना आदरणीया

    जवाब देंहटाएं
  3. वाहह्हह बहुत सुंदर अनुपम सृजन👌

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