ढूंढती आसरा जिंदगी

 आसरा,
 जीवन का आधार।
 पलता जीवन..!
 अगर मिले,
 आसरा सही।
 लेकिन,
 एक अदद रोटी ..!
 की तलाश में,
 भटकती देखी..!
 जिंदगी सड़कों पर,
 गुजरती देखी जिंदगी..!
 फुटपाथों पर..!
 छत भी न नसीब,
 सिर छुपाने को..!
 कौन देता है...?
 आसरा उन्हें।
 फटेहाल,
 भीख मांगते,
 भूखे-नंगे,
 आबालवृद्ध...!!
 ढूंढते आसरा..!
 फुटपाथों पर..
 चौराहों पर..
 पुलों के नीचे..
 गर्मी में तपते..
 ठंड में ठिठुरते..
 बारिश में भीगते..
 होता कहां नसीब,
 आसरा उन्हें...?
 भेड़-बकरियों की तरह,
 डंडे से खदेड़ती,
 पुलिस..!
 बुद्धिजीवी वर्ग देख,
 लेता मुंह सिकोड़..!
 टाट में लगे पैबंद सम,
 आसरा विहीन लोग..!
 हिकारत ,
 भरी नजरों का,
 करते सामना।
 पेट की आग,
 और...
 आसरे की,
 अंतहीन तलाश,
 में भटकते..
 बेसहारा लोग
 लगाते हैं प्रश्नचिह्न
 मरती हुई
 मानवता पर...!!

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

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