सब का साथ

सबका साथ ,सबका विकास,
कितना दुष्कर है ये प्रयास।
कहां पूरी होती है सबकी आस,
लगाते रहते हैं बस कयास।
'सब' में निहित 'विश्वबंधुत्व' का भाव,
जिसका दिखता है सदा अभाव।
सर्वत्र व्याप्त है भेदभाव,
'सब' पर हावी बस'स्व'का भाव।
सब' को लेकर चलना कठिन,
'सब' में अहम होता छिन्न-भिन्न।
अहम का त्याग है बड़ा कठिन,
रहती है सबकी मति भिन्न।
'सब'का साथ अति दुष्कर,
चलना होता कंटक-पथ पर।
'सब' को प्रसन्न रखें कैसे,
मनभेद मिटाना है दुष्कर।
'सब'में समता का भाव प्रबल,
मन के भाव हैं अति दुर्बल।
वैचारिक मतभेद मिटे कैसे,
एकत्व का भाव नहीं है सबल।
जाति-धर्म में बंटा समाज,
आरक्षण में जलता आज।
ऊंच-नीच का भाव प्रबल,
'सब'का भाव हो कैसे सबल ??

अभिलाषा चौहान
स्वरचित



टिप्पणियाँ

  1. सब में निहित विश्वबन्धुत्व का प्रभाव
    जिसका दिखता है सदा अभाव
    सब पर हावी स्व का भाव
    सटीक

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