आशियाना आत्मा का

आत्मा का आशियाना ,
प्रभु का दिया शरीर।
जिसमें रमती आत्मा
जैसे मलय समीर।

जिसमें रमती आत्मा,
प्रभु मिलन की रखें चाह।
पंचविकारों की बंदी बन,
न पावे प्रभु की थाह।

तड़पे है दिन-रात,
चैन पल भर न पावे।
बन कर बंदी आत्मा,
मुक्ति की आस लगावे।

जेल बना है आशियाना,
कैदी सी फड़फड़ावे।
भौतिकता में लीन,
यह आशियाना न भावे।

करती रहती सचेत,
बुद्धि समझ न पावे।
नश्वरता से मोह करे,
यह आत्मा को न भावे।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

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