शाश्वत सत्य

प्रवाह है निरंतरता,
अनवरत गतिशीलता।
जो अनिवार्य है तत्त्व,
इस सृष्टि चक्र का।
समय के प्रवाह में,
मिटते गए कालखंड,
भोग प्रकृति का दंड।
युग बदलते गए,
इतिहास बनते गए।
संस्कृति प्रवाह बनी,
सभ्यता गवाह बनी।
विचार गढ़ते गए,
परंपरा बनते गए।
समय के साथ जो चले
आदर्श बन कर पले।
थमे जो बने रूढ़ियां,
या बने थे बेड़ियां।
प्रवाह जब भी थमा,
छा गई थी कालिमा।
क्रांति के फिर स्वर उठे,
प्रवाह को गति मिले।
काव्य के प्रवाह में,
छुपी है नवचेतना।
भावों के रसधार में,
निहित है संचेतना।
उम्र के प्रवाह में,
बहती गई जिंदगी,
थमी,मौत से हुई बंदगी।
नदियों के प्रवाह में,
अतिक्रमण जब हुआ।
रौद्र रूप धर सरिता ने,
उसका था विनाश किया।
जीवन का प्रवाह ,
सनातन और शाश्वत है।
रूकता नहीं कभी,
सत्य ये चिरंतन है।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

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