प्यार की हो जैसे छुवन

प्रेम का मधुमास,
चल रही बासंती पवन।
स्पर्श उसका लगे जैसे,
प्यार की हो छुवन।

खिल उठी हैं मंजरी,
बह उठी तरंगिनि।
कूकती है कोयलिया,
सिहर उठा तन-मन।

गुनगुनाती धूप भी,
करती है स्पर्श ऐसे।
छुवन जैसे प्यार की,
मन को रंग रही हो जैसे।

तन-मन भीग उठा,
परस पाकर प्रेम का।
मैं मिटा ,अहम मिटा,
असर था ये छुवन का।

एक इस छुवन से,
संसार सारा खिल उठा।
गुनगुनाने लगे भंवरे,
प्रेम-पुष्प खिल उठा।

खुशियां तितलियां बन,
संतरंगी सपने दिखाने लगी।
मन की वीणा बावरी बन,
गीत प्रेम के गाने लगी।

राग-द्वेष मिट गया,
धुंध सारी छट गई।
प्रेम की इस छुवन में,
रात अंधियारी मिट गई।

दिव्यता का प्रकाश,
चहुं ओर जगमगाने लगा।
अज्ञानता का हुआ नाश,
ज्ञान-सूर्य मुस्कराने लगा।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

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