बदल गए भगवान....!!!
आज सुबह मैं,
हनुमान मंदिर गई थी।
मन में उलझनों की,
गुत्थियां कई थीं।
इतने दिनों की प्रभु ने,
पुकार नहीं सुनी थी
कलियुग के भगवान से,
ऐसी आशा तो नहीं थी।
मंदिर में मूर्ति को,
हिला हुआ मैंने पाया।
देखकर ये बड़ा,
अचरज मन में समाया।
मन ही मन मैं,
मूर्ति से पूछ बैठी।
आपकी प्रतिमा,
स्थान कैसे छोड़ बैठी?
आपने अभी तक,
पुकार मेरी नहीं सुनी।
क्या मेरी पूजा में,
रह गई थी कोई कमी?
सुनकर मेरी बात,
मूर्ति मुस्कुराई!
आंखें मूर्ति की,
आंसुओं से थी छलछलाई।
माता-पिता ने कभी,
जाति नहीं बताई।
राम ने जाति बिना,
प्रिय सेवक चुना भाई।
सेवक का धर्म था,
सबकी सेवकाई।
अब तो जाति पर
बात बन गई भाई।
आज भक्तगण सारे,
जाति मेरी खोज रहे ।
जाति की लेकर ,
प्रश्न कई उठ रहे?
जब तक अपनी,
जाति का पता नहीं लगाऊंगा।
तब तक मैं भी,
किसी के काम नहीं आऊंगा।
अब तो मैं भी,
जाति को ही अपनाऊंगा।
जो जाति मेरी होगी,
उसी के काम आऊंगा।
अन्य को राम जी से,
सिफारिश करवानी होगी
राम न सुने तो,
सीता से अनुमति लेनी होगी।
साम,दाम, दंड-भेद ,
की नीति अपनाऊंगा।
अब व्यर्थ ही मैं
किसी के काम नहीं आऊंगा।
नेताओं ने आज
मेरी आंखों को खोल दिया।
जाति के तराजू में,
भक्ति को तोल दिया।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
हनुमान मंदिर गई थी।
मन में उलझनों की,
गुत्थियां कई थीं।
इतने दिनों की प्रभु ने,
पुकार नहीं सुनी थी
कलियुग के भगवान से,
ऐसी आशा तो नहीं थी।
मंदिर में मूर्ति को,
हिला हुआ मैंने पाया।
देखकर ये बड़ा,
अचरज मन में समाया।
मन ही मन मैं,
मूर्ति से पूछ बैठी।
आपकी प्रतिमा,
स्थान कैसे छोड़ बैठी?
आपने अभी तक,
पुकार मेरी नहीं सुनी।
क्या मेरी पूजा में,
रह गई थी कोई कमी?
सुनकर मेरी बात,
मूर्ति मुस्कुराई!
आंखें मूर्ति की,
आंसुओं से थी छलछलाई।
माता-पिता ने कभी,
जाति नहीं बताई।
राम ने जाति बिना,
प्रिय सेवक चुना भाई।
सेवक का धर्म था,
सबकी सेवकाई।
अब तो जाति पर
बात बन गई भाई।
आज भक्तगण सारे,
जाति मेरी खोज रहे ।
जाति की लेकर ,
प्रश्न कई उठ रहे?
जब तक अपनी,
जाति का पता नहीं लगाऊंगा।
तब तक मैं भी,
किसी के काम नहीं आऊंगा।
अब तो मैं भी,
जाति को ही अपनाऊंगा।
जो जाति मेरी होगी,
उसी के काम आऊंगा।
अन्य को राम जी से,
सिफारिश करवानी होगी
राम न सुने तो,
सीता से अनुमति लेनी होगी।
साम,दाम, दंड-भेद ,
की नीति अपनाऊंगा।
अब व्यर्थ ही मैं
किसी के काम नहीं आऊंगा।
नेताओं ने आज
मेरी आंखों को खोल दिया।
जाति के तराजू में,
भक्ति को तोल दिया।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
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