ये कैसा देशप्रेम????
देशप्रेम का ढोल बजाते,
देश में भ्रष्टाचार फैलाते।
आरक्षण की आग लगाते,
जनता को हैं उल्लू बनाते।
देशप्रेम है इनको कितना,
सत्ता का जो देखे सपना।
अपनी-अपनी डफली बजाते,
घर को अपने भरते जाते।
महंगाई नित बढ़ती जाती,
भूख गरीब की न मिट पाती।
रोजगार को फिरते युवा,
हृदय में उनके उठता धुआं।
सैनिक अपनी जान गंवाते,
देशप्रेम पर बलि हो जाते।
उनके नाम पर होती राजनीति,
देश की रक्षा पर करें अनीति।
देश प्रेम का गाते गाना,
देश का खुद ही लूटें खजाना।
कुर्सी केवल इनको है प्यारी,
नीति-अनीति भी इनसे हारी।
जाति-धर्म को मुद्दा बनाए
जनता में हिंसा भड़काएं।
देश की लिए जो हुए बलिदानी,
वे बन गए बस एक कहानी।
अब सब करते हैं मन मानी,
देश प्रेम की बस यही कहानी।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
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