जिसे देख छाता उल्लास
पर्वतों के कपाट खोल सद्यस्नाता रश्मियाँ झाँकती घूँघट की ओट से शनैं शनै पग बढ़ाती वधू सी धानी पांवड़ों पर छोड़ती पगों की छाप लिए स्वर्ण कलश करती गृहप्रवेश देख उस नवौढ़ा को लेता अंगड़ाई जीवन करता अगुवाई बिखर जाता स्वर्ण सुख चहुंओर खनकते कंगनों बजते नुपुरों से गूँज उठता घर का हर कोना उसके रूप के उजास से देदीप्यमान घर आंगन उसकी मुस्कराहट से खिलते सुमन बिखरता मंकरद उस कामिनी की झलक पाने को आतुर झरोखों से झांकते नयन वृक्ष भी संगीतज्ञ से छेड़ देते ताल पंछी करते स्वागत गान मनोरम वातावरण में आती वह शनै शनै वधू सी छिड़कती मंगल कुमकुम खेतों में झूमती फसलों को हौले-हौले सहलाती गाती गुनगुनाती गीत जिसे देख छाता उल्लास। अभिलाषा चौहान
बहुत ख़ूब सखी
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय आभार सखी
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