कर्त्तव्य-कर्म का भान नहीं..!

कर्त्तव्य कर्म का ज्ञान नहीं,
निज मनुज-धर्म का भान नहीं।
वो भार लिए है जीवन का,
जिसे मंजिल की पहचान नहीं।
जीवन से जुड़े कर्त्तव्य सभी,
जिसने पूरे कभी किए ही नहीं।
जिसने स्व से ऊपर उठकर,
पर के लिए कभी सोचा ही नहीं।
जिसने करूणा के जल से ,
घाव किसी का धोया ही नहीं।
वो पाषाण-हृदय क्या जानेगा,
कर्त्तव्य-कर्म की महिमा कभी।
जो अपने सुख के लिए ही जिए,
दूसरों को जिसने दुख ही दिए।
वह मानव क्या कहलाएगा!
दानव से किए जिसने कर्म सभी।
कर्त्तव्य यही बस मानव का,
धर्म-जाति से ऊपर उठे।
परमार्थ और सदाचरण से
मानवता का परिष्कार करें।
प्रेम,अहिंसा,शांति का
संसार में वह प्रसार करे।
निज कर्तव्यों का पालन कर,
जग-जीवन का उद्धार करे।

अभिलाषा चौहान

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