साया .....!!

यादों के जंगल में,
अतीत के साये!!
लिपट जाते हैं,
सूखे तिनकों की तरह।
लाख चाह कर भी,
नहीं निकल पाते ,
इस भूल-भुलैया से..।
मन बढ़ता दो कदम आगे,
लौटता चार कदम पीछे..!
लिपटा उन्हीं सायों से ।
जिसमें वर्तमान अक्सर..
ठिठक जाता मेहमान की तरह।
थम जाता है प्रवाह,
उन्नति का...!
हम बने मूक दर्शक!!
उलझे रहते हैं,
सत्य की तलाश में..।
यह सत्य जो हमेशा,
चलता साये की तरह साथ,
कि, जीवन और मृत्यु में,
बस है शरीर का फासला ..
शरीर साया है आत्मा का,
चलता है तभी तक साथ,
जब तक है आत्मा को मंजूर !!

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

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