कब आएगी ऐसी दीवाली
राम अयोध्या आए मनने लगी दीवाली,
हर घर में फिर भी आई न खुशहाली।
राम नाम की महिमा खूब गई बखानी,
राम-नाम के मर्म से बने रहे अज्ञानी।
राम को दिल में अब तक नहीं बसाया,
राम-चरित को जीवन में नहीं अपनाया।
राम ने शबरी के झूठे बेर भी खाए,
हम मन से जाति-भेद मिटा न पाए।
राम-लक्ष्मण बने इक-दूजे की परछाई,
वर्तमान में देखो भाई का दुश्मन भाई ।
अब भी अबला नारी बनी हुई बेचारी,
हर घर बैठे रावण नहीं सुरक्षित नारी।
तुमने मारा रावण हमने दशहरा मनाया,
तुमसे ज्यादा लोगों में रावण जिंदा पाया।
राम घर आए खुशियों के दीप जलाए
मन में छाया अंधकार कहाँ मिटा पाए।
कहीं रौंनके होती कहीं छाया अंधियारा,
गरीब बेचारा तरसे कोई नहीं सहारा।
कब आएगी राम ऐसी सुंदर दीवाली
हर घर खुशियाँ होंगी अमा मिटेगी काली।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
हर घर में फिर भी आई न खुशहाली।
राम नाम की महिमा खूब गई बखानी,
राम-नाम के मर्म से बने रहे अज्ञानी।
राम को दिल में अब तक नहीं बसाया,
राम-चरित को जीवन में नहीं अपनाया।
राम ने शबरी के झूठे बेर भी खाए,
हम मन से जाति-भेद मिटा न पाए।
राम-लक्ष्मण बने इक-दूजे की परछाई,
वर्तमान में देखो भाई का दुश्मन भाई ।
अब भी अबला नारी बनी हुई बेचारी,
हर घर बैठे रावण नहीं सुरक्षित नारी।
तुमने मारा रावण हमने दशहरा मनाया,
तुमसे ज्यादा लोगों में रावण जिंदा पाया।
राम घर आए खुशियों के दीप जलाए
मन में छाया अंधकार कहाँ मिटा पाए।
कहीं रौंनके होती कहीं छाया अंधियारा,
गरीब बेचारा तरसे कोई नहीं सहारा।
हर घर खुशियाँ होंगी अमा मिटेगी काली।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें