ऐसी रही दीवाली

कुछ खट्टे कुछ मीठे,
अनुभव देकर गई दीवाली।
कुछ बीते पल याद आए,
बच्चों बिन सूनी रही दीवाली।
कुछ भावों के दीप जले,
कुछ नए प्रेम के पुष्प खिले।
झिल-मिल, झिल-मिल दीप जले,
बस मन ही गई दीवाली।
मेल-मिलाप का दौर चला,
कुछ सूनापन-सा बहुत खला।
उत्साह-उमंग की कमी खली,
बस शुभकामनाएं ही लगी भली
अपने में सिमटी रही दीवाली।
प्रेम का घट गया घनत्व,
औपचारिकता का बढ़ा महत्व।
चकाचौंध थी हुई भरपूर,
बस जीवन में कम था नूर।
पाँच दिनों का ये त्योहार,
लाया था खुशियाँ अपार,
साफ-सफाई के दौर चले,
सौंधे-सौंधे पकवान बने।
बात एक बस अच्छी लगी,
माटी के दीपक में लौ जगी।
पटाखों ने बहुत मचाया शोर,
हुआ प्रदूषण फिर पुरजोर।
भाई - दूज का आया दिन,
सूना रहा भाई के बिन
मन ही गया पावन त्योहार
पर कुछ कमी खली इस बार।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित





टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद प्रवाह

देखूं आठों याम