ध्वस्त होती संरचना


राम-राज्य की संकल्पना
युगों-युगों से
करते आए महापुरुष।
करना चाहते थे ऐसे
समाज की संरचना
जहां हो महत्त्वपूर्ण
मानवीय मूल्य
मानव-मानव में न हो भेद
जाति-वर्ण-सम्प्रदाय में
विभक्त न हो समाज
कुरीतियों, अंधविश्वासों से
मुक्त आदर्श समाज
जहां हो रामराज्य।
गौतम,महावीर,बापू
अन्यान्य महापुरुष
करते सामाजिक बुराईयों
का परिष्कार
स्थापित कर सद्भाव
करना चाहते थे
पूर्ण मानव की संरचना
जो ईर्ष्या-द्वेष से रहित
अवगुणों से मुक्त
मानवता का पथ-प्रदर्शक हो।
लेकिन खंड-खंड हो गई
संकल्पना
ध्वस्त हो रही सामाजिक संरचना
जातिवाद--सम्प्रदायवाद
अधर्म,अनीति की भेंट चढ़ कर।
संयुक्त परिवार
सामाजिक संरचना का आधार
होते विश्रृंखल
झुलसते रिश्ते
स्वार्थ के जहरीले नाग
डंस रहे सौहार्द्र को
अपने में सिमटते लोग
खंडित होती एकता।
भ्रष्टाचार,आरक्षण,अन्याय
की भेंट चढ़ते मानवीय मूल्य
घुन की तरह खोखला कर रहे
सामाजिक संरचना को!!!

अभिलाषा चौहान
स्वरचित
चित्र गूगल से साभार



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