मिथ्या

ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या
कहते हैं वेद-पुराण।
जग उलझा माया में,
नहीं सत्य का भान।
ईश्वर भक्ति को त्याग कर,
माया के पीछे भागे।
मेरा-तेरा अपना-पराया
कर - कर समय बितावे।
न सांसों पर जोर चले,
न धड़कन साथ निभावे ।
मूरख मन अति बावरा
मिथ्या के पीछे भागे।
इस सुंदर संसार को,
मिथ्या बातों से बांटे।
मानव माया का दास बन,
अपनी जड़ ही काटे।
खाली हाथ आए थे,
और खाली हाथ ही जाना।
जीवन बड़ा अनमोल है,
क्यों प्रपंचों में उलझाना।

अभिलाषा चौहान


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