भोर हुई

भोर हुई
प्राची दिशा में
क्षितिज पर
छाई लालिमा
छटने लगी कालिमा
आ गए अरुण
ले दिनकर का रथ
वसुधा पर फैली उर्मियां
मोती सी चमकी ओस की बुंदियां
उड चली विहग अवलियां
क्षितिज की ओर
चटकने लगी कलियाँ
बन पुष्प स्वागत में
दिनकर के
जाग्रत हुआ जीवन
हर्षित हुआ तन मन
बहने लगा मलयानिल
सुगंधित हुआ वातावरण
निखरा प्रकृति का  रूप
वसुधा बनी दुल्हन
हुआ अवनि अंबर का मिलन
क्षितिज से क्षितिज तक
सो गए तारकगण
ढांप कर अपना मुख
सर्वत्र बिखरा सुख ही सुख

अभिलाषा चौहान


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