ओ नंदलाला

ओ नंदलाला
कृष्ण कन्हैया
कितनी व्याकुल
तेरी गैया
न कोई ग्वाला
न रखवाला
दर दर की ठोकर हैं खाए
तुम बिन उनका कौन सहाए
ओ कान्हा ओ नंदलाला
ब्रज की बहुत दशा बुरी है
अब न बजत तेरी बांसुरी है
व यमुना किस्मत को रोए
जाने कबहुं तेरे चरण धोए
अब तो बन गई गंदा नाला
तेरे बिन कोई नहीं रखवाला
अब न रहीं व कदंब की छैंया
जहां पडे थे तेरे पैंया
वे मधुवन वृंदावन सांवरे
अब तो बन गए तीर्थ धाम रे
तीरथ करने हर कोई जाए
मन का तीरथ न कर पाए
आके ब्रज की दशा विचारो
दुखियन को तुम उपकारो
ओ नंदलाला कृष्ण कन्हैया
हर ओर कालिया नाग फुफकारे
को करे कालिया दहन सांवरे
तुम बिन कोई नहीं सुनवईया
पाप की गगरी अब तो भर गई
अब तो बात हाथ से निकल गई
एक बार फिर जन्मों नंदलाला
करो लीला यशोमती के लाला

अभिलाषा चौहान


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