रंग सुरंग बने हैं सारे
इतनी सुंदर रंग बिरंगी
प्रकृति की सुंदरता प्यारी
भांति भांति के पुष्प खिले हैं
महक उठे जीवन की क्यारी
बह उठती जब हवा बासंती
सरसों की फूले फुलवारी
ओढ चुनरिया धानी धरती
मन के सब संताप है हरती
चमक उठे हिमगिरि सोने सा
जब दिनकर की किरणें हैं पडती
देख नीलिमा जलधि गगन की
हो जाती हूं पूर्ण मगन सी
चहचहाते हैं पक्षी प्यारे
कितने सुंदर कितने सारे
घिर आता जब घोर अंधेरा
तब परिवर्तन ने डाला डेरा
प्रेम का रंग है सबसे न्यारा
इससे बंधा संसार है सारा
रंग सुरंग बने है सारे
आंखों को भावे हैं प्यारे
श्वेत श्याम में फंसा ये जीवन
देखे नित नए रंग मनभावन
केवल कोई चित्र नहीं ये
विचित्र है पर विचित्र नहीं ये।
अभिलाषा चौहान
प्रकृति की सुंदरता प्यारी
भांति भांति के पुष्प खिले हैं
महक उठे जीवन की क्यारी
बह उठती जब हवा बासंती
सरसों की फूले फुलवारी
ओढ चुनरिया धानी धरती
मन के सब संताप है हरती
चमक उठे हिमगिरि सोने सा
जब दिनकर की किरणें हैं पडती
देख नीलिमा जलधि गगन की
हो जाती हूं पूर्ण मगन सी
चहचहाते हैं पक्षी प्यारे
कितने सुंदर कितने सारे
घिर आता जब घोर अंधेरा
तब परिवर्तन ने डाला डेरा
प्रेम का रंग है सबसे न्यारा
इससे बंधा संसार है सारा
रंग सुरंग बने है सारे
आंखों को भावे हैं प्यारे
श्वेत श्याम में फंसा ये जीवन
देखे नित नए रंग मनभावन
केवल कोई चित्र नहीं ये
विचित्र है पर विचित्र नहीं ये।
अभिलाषा चौहान
आह ! कवित्त रूपी रंगों से निर्मित अति सुंदर शब्द-चित्र ! प्रकृति एवं भाव, दोनों ही के सौंदर्य का अद्भुत संगम !
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