चित्रकार की चित्रकृति

चित्रकार की चित्रकृति चित्रलिखित सी देखती
कौन सुघड़ सोच सोच कर अंतर्मन टटोलती
जिसने रंग भरे हैं न्यारे
कितने सुंदर कितने प्यारे
कितनी सुघड़ है उसकी कूची
गलती  की न कोई सूची
देख देख संसार की शोभा मन ही मन सोचती
किसकी है ये सुंदर रचना जिज्ञासा मन डोलती
हरा रंग बना खुशहाली
लाल बना है मंगलकारी
श्वेत बना शांति का दूत है
काला बना अज्ञान प्रतीक है
इंद्रधनुषी रंगों से ये दुनिया कितनी सुन्दर लगती
नित दिखते नए रंग इसमें कूची कोई न दिखती
पीला रंग बन बसंत
जीवन में खुशियां भरता
जलधि आसमां का रंग
मन का संताप है हरता
इन रंगों से सजी ये धरती कितनी सुंदर दिखती
चित्रकार की चित्रकृति मन को है हर्षित करती।
अभिलाषा चौहान    






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