कुछ दोहे.. (विषय-तृष्णा)
1* तृष्णा ऐसी डाकनी,मन को हर ले चैन।
जाके हृदय जे उपजे,सदा रहे बैचेन ।।
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2* जाके मन ना संतोष,जाके मन ना धीर।
तृष्णा पीड़ित वा मनुज,रहता सदा अधीर। ।
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3*मन में माया मोह की,जाके है जंजीर।
वाकी तृष्णा ना मिटी,मिट मिट गया शरीर।।
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4*मन में बसे विकार हैं,माया उलझी देह।
तृष्णा पीडित वा मना,ना जावे हरि गेह।।
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5*नश्वर इस संसार में ,भटके मन दिन रात।
ध्यान लगावन जब चलूं,तृष्णा मन भटकात ।।
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6*राधे राधे मैं भजूं,भजन करूं दिन रात।
तोऊ तृष्णा ना मिटी,क्षीण भयो है गात ।।
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7*मेरे मन में लौ लगी,करों राम सों भेंट।
ज्यों ज्यों जे तृष्णा बढी,बढो राम सों हेत ।।
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** **अभिलाषा चौहान ****
जाके हृदय जे उपजे,सदा रहे बैचेन ।।
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2* जाके मन ना संतोष,जाके मन ना धीर।
तृष्णा पीड़ित वा मनुज,रहता सदा अधीर। ।
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3*मन में माया मोह की,जाके है जंजीर।
वाकी तृष्णा ना मिटी,मिट मिट गया शरीर।।
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4*मन में बसे विकार हैं,माया उलझी देह।
तृष्णा पीडित वा मना,ना जावे हरि गेह।।
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5*नश्वर इस संसार में ,भटके मन दिन रात।
ध्यान लगावन जब चलूं,तृष्णा मन भटकात ।।
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6*राधे राधे मैं भजूं,भजन करूं दिन रात।
तोऊ तृष्णा ना मिटी,क्षीण भयो है गात ।।
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7*मेरे मन में लौ लगी,करों राम सों भेंट।
ज्यों ज्यों जे तृष्णा बढी,बढो राम सों हेत ।।
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** **अभिलाषा चौहान ****
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