हे मजदूर

मजदूर तुम बहुत सुखी हो
जो आज को जीते हो

न तुम्हें चिंता कल की
न ही भविष्य की
घर हो न हो
छत हो न हो
फिर भी नित नए घर बनाते हो
घरवालों के सपने सजाते हो

दबा के चंद सिक्के मुट्ठी में
बिना किसी चाह व शंका के
तुम अपना चूल्हा जलाते हो
न तुम्हें चिंता पद की न रूतबे की
न दिखावे की न किसी चोरी की
दिनभर अथक परिश्रम बस
बिना किसी तृष्णा के
बिना किसी लोभ के
कितनी मीठी नींद सो जाते हो

जरा देखो उसे
जिसके घर भी है रुतबा भी है
पद भी है साजोसामान भी
और आराम भी
फिर भी उसका जीवन
घिरा है तृष्णाओं से चिंताओं से
बीतती रात शैया में करवटें बदलते
सुविधासंपन्न ये आदमी कितना दुखी है
किंतु हे मजदूर तुम बहुत सुखी हो  ।

अभिलाषा चौहान

टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छी चिंतनशील रचना
    मजदूर नींव के पत्थर है हर उच्च कहलाने वाले समाज में

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  2. ना तुम्हे चिंता पद की ना रुतबे की
    ना दिखावे की ना किसी चोरी की
    सटीक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 01 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

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