मेरी मातृभाषा हिंदी
हिंदी को तुम कम मत आंको
भले किसी भाषा में झांको
इसमें देखो कितनी क्षमता
सब भाषाओं से इसको ममता
सबको आत्मसात कर लेती
कभी किसी से भेद न करती
जन जन की ये बोली प्यारी
मधुर मधुर है ये सबसे न्यारी
संसार बड़ा समृद्ध है इसका
बोलो ऐसा और है किसका
रस का झरना इसमें बहता
शब्द शब्द हर बात है कहता
मेरी मातृभाषा मुझको प्यारी
मैं जाऊं इस पर बलिहारी
अभिलाषा चौहान
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें