उस क्षितिज तक मुझे जाना है

अवनि अंबर का
जहां होता मिलन
जहां मिल कर झूमें
धरती गगन
सुनती हूं वहां है
खुशियों का चमन
उस क्षितिज तक
मुझे जाना है
सुनती हूं एक नई
दुनिया वहां
इस जहां से न्यारा
है वो जहां
दुख का नहीं है
नामोनिशान वहां
रहते सूर्य चंद्र तारे जहां
उस क्षितिज तक
मुझे जाना है
माया मोह का नहीं
कोई जाल वहां
न कोई स्वार्थ व धोखे
का व्यवहार वहां
उस क्षितिज तक
मुझे जाना है
सुनती हूं सत्य ने बसाया
अपना संसार वहां
परमेश्वर भी करते हों
निवास जहां
उस क्षितिज तक
मुझे जाना है
सत्य का साक्षात्कार
मुझे पाना है।

अभिलाषा चौहान








टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर रचना अभिलाषा जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुनती हूं सत्य ने बसाया
    अपना संसार वहां
    परमेश्वर भी करते हों
    निवास जहाँ
    ऐसा काल्पनिक संसार
    कौन से क्षितिज पे मिलेगा....?
    वाह!!!
    लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं

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