स्वभाव मेरा

लकीर पीटना
स्वभाव नहीं मेरा
बंधनों में बंधना
स्वभाव नहीं मेरा
परंपरा का पालन
स्वभाव नहीं मेरा
मैं हूं प्रगतिवादी
समय के साथ
ढल जाती हूं
लेती हूं सांस
खुली हवा में
नवीनता की सुगंध
महसूस करना
है स्वभाव मेरा
बंधी हुई परिपाटी से
आती दुर्गंध
मुझे विचलित करती है
बेड़ियों में जकड़ा
ये बैरी समाज
काट देना चाहता है
मेरे पर
घोंट देना चाहता है
मेरी आवाज़
कितनी ही आवाजें
दफन हो गई
कितने ही बलि
चढ गए
कुप्रथाओं के
बने लकीर के फकीर
दुहाई देते
दकियानूसी विचारधारा की
परिवर्तन से है एतराज इन्हें
घुट रहा है दम जाने
कितने मासूमों का
कुचल जाते हैं न जाने
कितने अरमान इसके तले
इससे आंखें मूंदें रहना
मेरा स्वभाव नहीं
परिवर्तन की आवाज
उठाना है स्वभाव मेरा

अभिलाषा चौहान





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