आंगन में फुदकती गोरैया....

मेरे आंगन में फुदकती गोरैया
बडे़ जतन से
अपना नीड बनाती
तिनका - तिनका चुन कर लाती
बडे़ जतन से उसे सजाती
नवजीवन के सृजन में तत्पर
दृढसंकल्पित
नन्हे-नन्हे पंखों से
आसमां की ऊंचाई छूने को तत्पर
उत्साहित आनंदित जोडा
भावों का संसार सजाता
अजनबी पंछी के आने पर
विकलता का भाव गहराता
ममता का अतुल्य प्रदर्शन
नवजीवन का ऐसा संरक्षण               भावविह्वल मन होता जाता
चुन-चुनकर दाना लाते
बारी-बारी सप्रेम खिलाते
पंख हुए जब नए जीव के
खुला आसमां उसको दिखाते
सारे बंधन तोड़ उसे
स्वयं से जीवन जीना सिखाते
नहीं है कोई माया मोह का बंधन
बस है तो प्रेम समर्पण
उड जाता नवजीव आसमां में
बैठे-बैठे दोनों मुस्काते
अपने हिस्से का दाय निभा के
उसका दाय उसे समझा के
नयी राह फिर अपनाते
कितना जीवन में विस्तार वहां है
बंधन का कोई नाम कहां है
ऐसा मोहमुक्त हो मानव जीवन
पल में मिट जाए सब संपीडन।
अभिलाषा चौहान



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