भगीरथ की भागीरथी


शिव शीश जटा के बीच
बसी थी निर्मल गंगा
भगीरथ के तप से
भागीरथी बन आई धरा पर गंगा
हरने जन जन के संताप
जागा धरती का भी भाग
जब बही धरा पर गंगा
बनी संस्कृति की पहचान
डाली जनजीवन में जान
कल कल करती बहती जाए
अमृत का वह रस छलकाए
धोते धोते पाप मनुज के
हर पल मैली होती जाए
भागीरथी का महत्व भुला के
गंदे नाले उसमें गिराए
सबके दुख को हरने वाली
दुखिया बन कर बहती जाए
निर्मल पतित पावनी गंगा
आज प्रदूषित नदी कहलाए
मोक्षदायिनी कलिमल हरनी
देवों ने महिमा है बरनी
शिव ने भी जिसे शीश पर सजाया
हम ने उसका क्या हाल बनाया..?
आज धरा पर बहे उपेक्षित
मानव कर्मों से हुई प्रदूषित
मां गंगा कहते नहीं थकते
पर मां का सम्मान न करते
रहे बन भारत की वो शान
मिले उसको उसकी पहचान 
स्वच्छ बने फिर अपनी गंगा
निर्मल पावन मां गंगा
मन में दृढ़ संकल्प जगाओ
अब अपना कर्तव्य निभाओ
गंगा को फिर निर्मल बनाओ
रहे हम सबके हृदय के बीच
सोहे शिव के फिर शीश
निर्मल पावन मां गंगा!
               अभिलाषा चौहान

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद प्रवाह

देखूं आठों याम