अनंत यात्रा........

कुछ कहा भी नहीं
कुछ सुना भी नहीं
लिए अपना दर्द
दिया औरों का दर्द
समेट तुम
चल दिए अनंत यात्रा पर
छोड गए कसक मन में
तोड़ गए सभी सपने
शायद ये जिंदगी तुम्हें
रास नहीं आई
आनी भी नहीं चाहिए
क्या रखा है इस जिंदगी में !
हर ओर छलावा है
हर ओर दिखावा है
सच्चे दिल की पीडा
कोई कहां समझ पाता है
सब निमग्न है
अपने - अपने स्वार्थ में
कोई संपत्ति में
तो कोई अर्थ में
पड़ी ही नहीं जब
किसी को किसी की
फिर क्यों जीना व्यर्थ में?
क्या तुमने भी यही  सोचा?
वो दर्द जो तुम्हारी आंखों में
मैने महसूस किया था
क्या था उन आंखों में?
चल दिए तुम अनंत यात्रा पर
निःशब्द ......
छोड़ गए तुम एक अनुत्तरित प्रश्न
जिसमें जूझते रहेंगे
हम ताउम्र
खोजते तुम्हारी चुप्पी का कारण
शायद कभी हम समझ पाएं
याकि खुद को समझा पाएं
अभिलाषा चौहान



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