जिंदगी को जिंदगी रहने दो

मेरी यह पंक्तियाँ उन लोगों के ऊपर आधारित है, जो ऐसा जीवन जीते हैं।

कभी अहम
कभी वहम
कभी मैं
कभी तुम
जिंदगी बनी
इनसे सदा
जहन्नुम
कभी रार
कभी तकरार
कभी वार
कभी तिरस्कार
जिंदगी हुई
इनसे बेकार
कभी मेरा
कभी तेरा
जिंदगी को
मायूसियों ने घेरा
कभी तृष्णा
कभी ईर्ष्या
कभी घृणा
कभी कुंठा
जिंदगी को नफरतों ने घेरा
कभी डर
कभी फिकर
जिंदगी में छाया अंधेरा
जिंदगी को जिंदगी रहने दो
खुदा की बंदगी रहने दो
न बनाओ इसे मुश्किल
इसे फूलों की तरह खिलने दो ।

          अभिलाषा चौहान 

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