मेघ गाते आ रहे मल्हार नभ में.....

मेघ गाते आ रहे मल्हार नभ में
विहग अवली झूमती जाती गगन में
बन गलहार मेघ का सत्कार करने
पवन मुक्त छंद स्वागत गान करते
वृक्ष भी लय ताल संग नृत्य करते
मोर दादुर कोयल पपीहा राग छेडें
मेघ मल्हार संग अपनी तान जोडें
बरस उठी चहुंओर रसधार है अब
प्रकृति भी रसरंग में डूबी हुई अब
प्रिय प्रेम की बूंदो का स्पर्श पाकर
अवनि ने कर लिए श्रृंगार सोलह
प्रिय मिलन की घड़ी  समीप आई
देख प्रिय को विरहिणी है लजाई
चंचला दामिनी पल-पल बताए
मेघ मल्हार अलापते आ गए हैं
प्रियतमा पर प्रेमरस बरसा रहे हैं
मिलन का संगीत है देखो अनूठा
धरा से नवजीवन का अंकुर फूटा
हर्ष का पारावार है चहुंओर अब
ओढ ली अवनि ने धानी चुनर जब
सृष्टि भी निखरती जा रही अब
मेघ सारे कलुष को धो रहे हैं
मेघ मल्हार गाते आ गए हैं
छिड़ गया है राग अब क्रांति का
है नहीं समय अब विश्रांति का
हो गया अवनि का जीवन रसमय अब
होगा मनुज का जीवन रसमयी कब ?
अभिलाषा चौहान
             फोटो गूगल से संगृहीत

टिप्पणियाँ

  1. वाह सुंदर श्रृंगार रचना पावस का सांगोपांग वर्णन गीत काव्य मे,
    वा। मेघ मल्हार।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह !!!बहुत ही शानदार रचना।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह वाह अभिलाषा जी ...
    पावस ऋतु का मन मोहक वृतांत
    मन हो गया खुद ही मेघ समान
    सुरीला लेखन ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आपका आदरणीया इंदिरा जी आपकी सराहना से मन प्रफुल्लित हो उठा
      कृपया इसी तरह मार्गदर्शन करती रहे।

      हटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ९ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया श्वेता जी ।
      मेरी रचना को सम्मिलित कर आपने मेरा
      उत्साहवर्धन किया है। पुनः धन्यवाद

      हटाएं
  5. मेघ मल्हार का मन मोहक गीत...जैसे वर्षा की बूँदें रूह में मकरंद घोल रही हों। बहुत सुंदर रचना।
    सादर
    #अपर्णा बाजपेई

    जवाब देंहटाएं

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