तन्हाई जीवन में छाने लगी है.......

मेरी स्वानुभूतियां जिन्हे शब्दों में ढालकर
आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूं.........



आजकल चांद भी दहकने लगा है
चांदनी तन को चुभने लगी है
नहीं सितारों में चमक पहले जैसी
रात भी अब दिल को खलने लगी है
मौसम की तरह बदलने लगे सब
तन्हाई जीवन में छाने लगी है
खोया है जीवन का सारा सुकूं अब
आंधियां जबसे चलने लगी हैं
हमसफर की बदलने लगी फितरतें अब
साथ चलने की कीमत लगने लगी है
हर बात में होती सौदेबाजी यहां अब
दुकानें घर घर खुलने लगी हैं
बिकने लगे आज जीवन के रिश्ते
खुशियां भी आज रोने लगी हैं
दिखावे के बाजार सजते यहां अब
आंसुओं की कीमत घटने लगी है
घुटने लगा दम आबो-हवा में
जिंदगी की रूमानियत खोने लगी है ।


अभिलाषा चौहान

टिप्पणियाँ

  1. आज के दिखावे और वाह-वाह की दीवानी दुनिया और रिश्तों का बाज़ारीकरण पर करारा प्रहर ...

    जवाब देंहटाएं
  2. सब छोड़ यहीं उड़ जाना है
    पिंजरे के मोह में झंखना क्यों?
    बहुत ही सुंदर रचना ....मन को झकझोरती औत चेतना को जगाती ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जीवन के हर मोड़ पर इंसानी फितरत
      किस तरह रंग बदलती है,बस यही
      बताना चाहती हूं। प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार आदरणीय 🙏

      हटाएं
  3. खोया है जीवन का सारा सुकूं अब
    आंधियां जबसे चलने लगी हैं
    रिश्ते भी मौसम की तरह बदलते रहते हैं..
    बहुत सुन्दर, भावपूर्ण...

    जवाब देंहटाएं

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