भूखे भजन न होय गोपाला

हमारे देश में एक देश ऐसा भी है जहां सुख का
सूरज अभी नहीं उदित हुआ है, क्या मैं सही कह रही हूं.......


वो आंखें जो करती
सदा अच्छे दिन की उम्मीद
उनके जीवन में भी कभी
आ जाए ईद
रहती है सदा उनकी
जेब खाली
नहीं मनती कभी
वहां दीवाली
खुशियां उनकी
हो जाती होली
चुभती हैं उन्हें
बडी बडी बोली
दो वक्त की रोटी के
पडे जहां लाले
वहां बडे बडे सपने
कोई कैसे पाले
सर पर छत
न कपडे नसीब हो
गरीबी ने फोडे
जिनके नसीब हो
आंखों में जिनके
हर पल नमी हो
जिनके जीवन में
खुशियां ही नहीं हो
जो अपना भविष्य ही
अंधेरे में पाते हैं
देश के भविष्य को
कहां समझ पाते हैं
सूनी आँखों से कहीं
सपने देखे जाते हैं
भूखे पेट कहीं
भजन किए जाते हैं  ! !
                          अभिलाषा चौहान 

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