जीवन की परिभाषा


जीवन कभी-कभी भार बन जाता है,
जीवन कभी-कभी हार बन जाता है ।

प्रेम हो तो जीवन उपहार बन जाता है,
घृणा हो तो जीवन धिक्कार बन जाता है।

हंसी हो तो जीवन प्रवाह बन जाता है ,
गम तो जीवन ठहराव बन जाता है।

जीत हो तो जीवन जश्न बन जाता है,
हार हो तो जीवन मातम बन जाता है।

मिलन हो तो जीवन मंजिल बन जाता है,
वियोग हो तो जीवन साहिल बन जाता है।

खुशियां मयस्सर तो जीवन सरल हो जाता है,
खुशियां काफूर तो जीवन दुश्वार हो जाता है।

कलह जीवन को कठिन बना देता है,
सुलह से जीवन सरल बन जाता है ।

शांति से जीवन स्वर्ग बन जाता है,
अशांति से जीवन नरक बन जाता है।

उल्लास जीवन को आनंदमय बनाता है,
भावों से जीवन रसपूर्ण हो जाता है ।

जीवन भावनाओं का सुंदर सा गुलदस्ता
संघर्ष और दुख इसके हैं साथी
जीवन का हर पल समरस हो जियो तो
यह जीवन वरदान बन जाता है । 
भार समझने से अभिशाप बन जाता है।  ।
******अभिलाषा चौहान ******

टिप्पणियाँ

  1. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना ने उत्साहित किया संजय जी
      सादर आभार व्यक्त करती हूं।

      हटाएं

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